


वायना
जब तक लेखन परंपरा का विकास नहीं हुआ था तब तक ज्ञान का एक मुख्य आधार था वाचना (वायणा) और श्रवण (सुनना)। शिष्य अपने गुरु से वाचना लेकर उसे ग्रहण करके कंठस्थ करते थे। इस प्रकार वाचन और श्रवण परंपरा पर आधारित क्रम को “वाचना-परंपरा” कहा जाता है।
भगवान महावीर के निर्वाण के बाद उनके उपदेश मौखिक परंपरा से संरक्षित रहे। भगवान महावीर स्वामी के उपदेशों को उनके गणधर शिष्यों ने सूत्र रूप में गूंथा और वह गूंथा हुआ ज्ञान उन्होनें सूत्र और अर्थ रूप से अपने शिष्यों को वाचना के द्वारा प्रदान किया। वाचना की यह परंपरा बहुत लम्बे समय तक चलती रही। आचार्य भद्रबाहुस्वामी के पश्चात् श्रुत की धारा क्षीण होने लगी।
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Vayana : Sharing the Legacy
Vāyaņā आप सभी के लिए लेकर आ आया है Interactive Question Series, जिसमें जैन दर्शन से जुड़े interesting और ज्ञानवर्धक प्रश्न होंगे। इन प्रश्नों के जवाब देने का अवसर आप सभी को मिल सकता है।
How It Works?
Daily Question: We’ll share questions on our
WhatsApp channel.
Participate: Answer through an interactive poll.
Learn More: Get the correct answer with a simple and meaningful explanation.
TESTIMONIAL

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Prachi Jain
Student
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Manya Jain
Student
Confused About How This Operate?
We suggest you to refer this FAQ or email us at
Vayana.study@gmail.com
वायणा क्या है?
वायणा जैन अध्ययन पर आधारित एक प्रकल्प है, जिसके माध्यम से जैन दर्शन से संबद्ध विभिन्न विषयों को ओन्लाइन क्लास के माध्यम से सभी जिज्ञासु जनों तक पहुँचाया जाएगा।
वायणा का उद्देश्य क्या है?
जिसका उद्देश्य तीर्थंकर भगवान के द्वारा प्ररूपित आगमों में रही हुई श्रुत परंपरा को संरक्षित करना, जैन अध्ययन-अध्यापन को बढ़ावा देना और व्यापक रूप में श्रुत का प्रचार करना है। अधिक जानकारी के लिए आप वेबसाइट पर विजन-मिशन देखें।
वायणा का टैग-लाइन क्या है और उसका अर्थ क्या है?
वायणा का टैगलाइन है “Sharing the Legacy” (श्रुत परंपरा की अविरल धारा) है। इसका अर्थ जैनों की ज्ञान (श्रुत) परंपरा के सतत प्रवाह और उसके संरक्षण से जुड़ा हुआ है। “श्रुत” का अर्थ श्रुति (सुनकर प्राप्त किया गया ज्ञान) होता है, जो जैन परंपरा में प्राचीन शास्त्रों और ज्ञान का प्रतीक है। “अविरल धारा” का अर्थ निरंतर प्रवाह से है, जो यह दर्शाता है कि जैन ज्ञान परंपरा बिना रुके, पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होती रही है और इस अमूल्य ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाना और सभी जन तक पहुँचाना। यह केवल अध्ययन और संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे समाज के विभिन्न स्तरों तक पहुँचाने और जीवंत बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
वायणा से कौन जुड़ सकता है?
कोई भी व्यक्ति जो जैन अध्ययन और ज्ञान परंपराओं में रुचि रखता है, वायण से जुड़ सकता है। जैसे:
- जो जैन ग्रंथों, तत्त्वों एवं सिद्धान्तों को समझना और सीखना चाहते हैं तथा जो जैन दर्शन, इतिहास, और साहित्य में गहरी रुचि रखते हैं।
- जो जैन धर्म पर शोध कर रहे हैं या करना चाहते हैं अर्थात् जिनका अध्ययन या शोध क्षेत्र इंडोलॉजी, जैन साहित्य, तत्त्वज्ञान, इतिहास या भाषा विज्ञान से जुड़ा है।
- जो जैन अध्ययन को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में रुचि रखते हैं। जो जैन ग्रंथों की व्याख्या, शिक्षण और शोध में योगदान देना चाहते हैं।
- जो श्रुत परंपरा और जैन ज्ञान की अविरल धारा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।
- जो जैन दर्शन के गूढ़ रहस्यों को जानकर आत्म-साक्षात्कार की दिशा में बढ़ना चाहते हैं एवं अपनी साधना को सुदृढ़ करना चाहते हैं।
वायणा से कैसे जुड़ा जा सकता है?
वायण से जुड़ने के लिए:
- आप व्हाट्सएप चैनल https://whatsapp.com/channel/0029Vb3HG0CGk1FuhVHvVv3h को जॉइन कर सकते है जिसमें आपको समय-समय पर वायणा में चलने वाली गतिविधियों से अवगत करवाया जाएगा।
वायणा की वेबसाइट पर लोगइन कर सकते है और विभिन्न ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लें सकते है।
वायणा का नाम "वायणा" क्यों रखा गया?
“वायणा” यह नाम जैन श्रुत परंपरा से प्रेरित है और यह एक गहरा दार्शनिक व सांस्कृतिक महत्व रखता है। “वायणा” शब्द प्राकृत में प्रयुक्त होता है और इसका अर्थ ज्ञान, अध्ययन, वाचन, और विचार से जुड़ा हुआ है। यह शब्द श्रुत परंपरा के मौलिक तत्त्वों को दर्शाता है। जैन आगमों में “वायणा” का तात्पर्य अध्ययन, श्रवण, और ज्ञान के विस्तार से है। जैन आचार्यों ने ज्ञान के प्रसार और उसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिए वायणा परंपरा को अपनाया, जिसमें ग्रंथों का अध्ययन, व्याख्या और शिक्षण शामिल है। यह पंचम आगम वाचना की परंपरा से भी जुड़ा है, जहाँ जैन ज्ञान धारा को संरक्षित और प्रचारित करने की परंपरा रही है।


Vāyaṇā serves as a space for seekers, scholars, and practitioners to delve into the depths of Jain studies and rediscover its
relevance in the modern world.
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